सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नव वर्ष नव संकल्प


नव वर्ष की शुभकामनाएं मेरे सभी मित्रों और मेरे visitors को , नए साल की शुरू आत पर हर व्यक्ति हर जीव और एक राष्ट्र में नयी ऊर्जा का संचार होता है और जब नयी ऊर्जा का संचार होता है ब्यक्ति कुछ नया करने का और नयी सोच और एक संकल्प का उदय होता है ,यदि ब्यक्ति की बात करें तो में ही वो ब्यक्ति हो सकता हूँ , तो में इस वर्ष ज्यादा से ज्यादा ब्लॉग लिखने का प्रयास करूँगा और ज्यादा से ज्यादा प्रभावी और में जो लिखूंगा उस पर अमल करने का भी प्रयास करूँगा ,और यदि राष्ट्र की बात करें तो किसी देश का भला तभी हो सकता है जब उसके नागरिको को संकल्प लेना चाहिए कि जो भूले , गलतियाँ हुई है , वो इस आने वाले समय में वो न हों ,२०११ को देखा जाय तो पूरी तरह भ्रष्टाचार वर्ष के रूप में देखा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी क्यूँ कि जब घोटालो कि खबर पता चलती तो ये लगता कि जैसे राजनीती के मैदान के खिलाडी एक दुसरे का रिकॉर्ड तोड़ रहे हों ,और एक दुसरे से कह रहे हों कि तुझे में बड़ा चोर बनने नही दूंगा ,,,,, चाहे वो commonwealth game घोटाला हो , 2g spectrum घोटाला हो ,करनाटक सरकार द्वारा हुआ घोटाला,या फिर बॉम्बे का आदर्श सोसाइटी घोटाला हो ,
इन घोटालो के कारन हमारी जाँच agencies का दुरपयोग देश लिए घातक है , शर्म की बात तब है जब इन घोटालो के खिलाफ आवाज उठाई जाती है , तो इन आवाज उठाने वालो को इस तरह से दबाया जाता है कि आगे से कोई दोबारा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज ही नही उहाये ,लेकिन इन भ्रष्टाचारियों से में कहना चाहूँगा यदि नही संभले तो ये कदम रुकेंगे नही, क्यों कि संसद से जन संसद बड़ी है , और यदि भारत के नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत जन लोकपाल कि मांग करती है तो सरकार की पहली जिम्मेदारी है की जो लोग इन गतिविधियों में लिप्त है उन्हें कारावास तक भेजे और एक मजबूत लोकपाल बिल लाये ,
और दूसरी और कुछ आतंकवादी गतिविधियाँ जो की न्याय के मंदिर तक पहुँच चुकी है , ये इस नए वर्ष में न हों ,
इस नए वर्ष पर एक सकल्प लें की हम भ्रष्टाचार और आतंकवाद मुक्त भारत बनायेंगे ,,,,,,
वन्दे मातरम
दिब्यांग देव शर्मा

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हाय ये महगाई

आज जब एक आम आदमी के बारे मैं सोचता हूँ तो एक परेशानी व् चिंता से घिरा हुआ पता हूँ क्यों की एक ब्यक्ति जिसका रोजगार १००-१२५ रुपये है और उसके घर मैं सिर्फ़ चार सदस्य हैं (१ स्वयं ,१ बीबी २ बच्चे ) तो उसके खर्चे कैसे चलते होंगे ,क्योंकि आज कोई भी सब्जी १५-२० रुपये किलो से कम नही , और कोई भी दल ६०-९० केजी से कम नही ,और आटे का भावभी १६-१८ रुपये किलो से कम नही ,दूध भी २८-३० लीटर है यदि ऐसी स्थिति मैंएक आम आदमी खाए तो क्या खाए ,,यदि छोटी सी गड़ना करें तो हम पाएंगे की यदि एक ब्यक्ति एक दिन मैं ५०० ग्राम आता खाता है और लगभग ५०० ग्राम ही वो सब्जी भी खाता होगा , और घर मैं चार सदस्य हैं तो इस हिशाब से ८० रुपये सिर्फ़ उसके भोजन मैं ही खर्च हो रहें है ये तो सिर्फ़ भोजन है इसमे नही चाय है नही और अन्य नास्ता नही है और उस व्यक्ति के बच्चे स्कूल जाते हों तो उनकी शिक्षा तोमुश्किल है क्यों की जरूरी नही वह व्यक्ति शाशन द्वारा दी गई विभिन्न कैटगरी मैं आता हो (),हम भारत मैं रहते हैं और हमारे यंहा सामूहिक परिवार की व्यवस्था है यदि एसी स्थिति मैं कंही उसके माता पिता उसके साथ रहते हैं तो वह क्या करे क्या बच...

बादशाह से "इक्का" बड़ा होता है

तांश के खेलो में ज्यादातर महत्त्व बादशाह का होता है लेकिन कुछ खेल ऐसे है जिनमे बादशाह सिर्फ बादशाह ही रहता है अधिकार होते हुए भी वो अपने अधिकार के बिना रहता है कुछ तांश के खेलो में बादशाह से ज्यादा इक्के का महत्त्व होता है , इस समय पर बादशाह कितना भी योग्य ,कितना भी होशियार हो , कितना भी इमानदार हो ,कितना भी बहादुर लेकिन उसे इक्के से कमजोर माना जाता है और ऐसे में बादशाह को सिर्फ बादशाह ही कहा जाता है लेकिन वो चलता तो इक्के के इशारे पर ही है और इक्का चाहे जितना अयोग्य हो , असंस्कारित हो ,जिसे ये भी नही पता हो कि क्या सही है क्या सही नही, लेकिन वो अपनी धूर्तता और ताकत के कारण एक योग्य बादशाह को अपनी उँगलियों पर नचाता है उस में देश को सिर्फ हानी के अलावा कुछ नही मिलता है आज मेरे देश में भी कुछ ऐसा ही है हमारा बादशाह इक्के की पकड़ में कुछ इस तरह फंसा है की वो चाह कर भी कोई निरणय नही ले पाता है यदि कोई बात आती हे तो वो अपने से पहले अपने इक्के से पूछता की हुजुर क्या करना है , फिर इक्का जो बिना योग्यता , और बिना किसी संस्कार वाला है जिसे ये...

कोई विशेष नही ,,,,,,,,,,,,

अभी हाल ही में भारतीय क्रिकेट टीम में जो चल रहा था , वो सच में एक सोचने का विषय था ,ऑस्ट्रेलिया की मीडिया ने बताया की भारतीय कप्तान और उप -कप्तान के बीच शीत युद्ध चल रहा है , इस युद्ध को देख के मुझे अपनी पाठ्यपुस्तक बाल भारती की एक कहानी सुई धागा और मशीन याद आती है ,मुझे उस लेखक का नाम तो याद नही है जिसने सुई धागा और मशीन कहानी लिखी है लेकिन उनकी कहानी आज भारतीय टीम के ऊपर पूरी तरह से सही जचती है , एक टीम भी एक तंत्र है और यदि तंत्र का कोई भी अंग सही से काम नही करता है तो वो तंत्र सही से काम नही करता है और धीरे धीरे नष्ट हो जाता है , और यही बात टीम के ऊपर कही जाये तो यदि टीम के सदस्य अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझाने लगे तो उस टीम की हार निश्चित है और ऐसा हुआ भी ,ये सच है की भारतीय कप्तान और उपकप्तान अपने क्षेत्र में अद्वितीय है दोनों के नाम कई बड़े रिकॉर्ड है , लेकिन कभी उन्हें ये नही सोचना चाहिए की में हूँ तो टीम है नही तो इस ...